लोगों की राय

बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2677
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

हिन्दी काव्य का इतिहास

प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।

अथवा
हिन्दी भक्ति साहित्य के महत्व पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
अथवा
भक्तिकालीन हिन्दी काव्य की प्रमुख विशेषताओं या प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर -

मध्यकाल का पूर्ववर्ती समय भक्तिकाल के नाम से जाना जाता है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इस काल को सम्वत् 1557 से 1700 तक माना है। इस काल में परगणित हिन्दू जाति का ध्यान वीरभावना से ईश्वरोपासना की ओर लग गया था। आदिकाल के अन्तिम चरण में जब हिन्दू राजा प्रायः पराजित हो चुके थे तो युग की धारा भी बदलने लगी और कवियों ने ईश्वर के प्रभाव और गुरु महिमा का गायन प्रारम्भ कर दिया। जिसके फलस्वरूप एक नई काव्यधारा भक्तिधारा के रूप में प्रवाहित होने लगी।

ऐतिहासिक परिस्थिति एवं प्रभाव - आदिकाल की अशान्ति, लड़ाई-झगड़े और राजनीतिक आँधी धीरे-धीरे शान्त हो गयी। लोगों को दम लेने का अवकाश मिला। राजपूतों की शक्ति का लगभग ह्रास हो चुका था। मुसलमानों की जीत पर जीत ने उनमें निराशा का भाव पैदा कर दिया था। वे अब नवीन परिस्थितियों में जीवित रहने और अपने स्वाभिमान की रक्षा के साथ परम्परा को बचाने के लिए चिन्तन थे। दूसरी ओर मुसलमान कठिन संघर्षों के बाद अपने पैर जमा चुके थे। अब वे भी विजित देश के लोगों से सम्पर्क चाहते थे और राज्य संचालन के लिए स्थायी शक्ति चाहते थे। दोनों ओर शान्ति की लालसा थी। ऐसे समय में वीरगाथाओं का कोई महत्व नहीं होता। नई परिस्थितियों में हिन्दुओं की चिन्तन दिशा भी बदलने लगी। वे अब देश की सांस्कृतिक परम्परा की ओर विचार करने लगे। वे सोचने लगे कि उनका धर्म ऐसा स्वरूप धारण करें जिसका विधर्मी खण्डन न कर सके। दोनों ओर मिलन और नई चेतना के भाव विकसित हो रहे थे।

यहाँ यह न समझा जाये कि हिन्दी का भक्तिकाल मुसलमानों से प्रभावित था, हमारे कवियों के पास अपनी ही सामग्री पर्याप्त थी। वेदान्तों के गूढ़तम रहस्य एकेश्वरवाद की स्थापना में सक्षम थे। उन्हें दूसरों से कुछ लेना-देना नहीं था। हाँ इतना अवश्य हुआ था कि मुसलमानों के आगमन ने हिन्दुओं को सोचने-समझने और नई दिशा लेने के लिए उत्तेजित किया।

ऐसी परिस्थितियों में हिन्दू जनता की भावना की ओर झुकी। दक्षिण भारत से भक्ति की एक प्रबल धारा फूट पड़ी। इसके साथ ही इस काल के चिन्तकों में जो मूल विचारधारायें काम कर रही थी, उनमें प्रमुख थी भारतीय संस्कृति की ज्ञान धारा की पुनः स्थापना और अन्यों के साथ समन्वय की आकांक्षा। इस प्रकार इन प्रवृत्तियों के अनुसार काव्यों में भी नवीन धाराएँ प्रवाहित होने लगी।

भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताएँ या प्रवृत्तियाँ

भक्ति के इस महान साहित्य में कुछ ऐसी समान भावनाएँ दृष्टिगोचर होती हैं जो निर्गुण में रखी गयी हैं। भक्ति साहित्य में पाई जाने वाली समान भावनाएँ निम्न प्रकार हैं -

(1) नाम महात्म्य - सभी भक्त कवियों ने नाम की महत्ता को राम स्वीकार किया है तथा उसे साधना मार्ग का महत्वपूर्ण अंग बताया है। तुलसी ने भी नाम को राम से बड़ा माना है। नाम में निर्गुणसगुण दोनों का समन्वय हो जाता है दृष्टव्य है

निर्गुण की सेवा करो, सगुण को करो ध्यान।
निर्गुण सगुण से परे, तहाँ हमारा ध्यान ॥

(2) गुरु के प्रति भक्तिओं की आस्था - सभी भक्त कवियों ने गुरु का महत्व भी स्वीकार किया है और उसे भगवान के सदृश बताया है। कबीरदास जी ने तो स्थान-स्थान पर गुरु की महिमा का वर्णन किया है तथा भगवान से भी बड़ा कहा है

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काँके लागू पांय।
बलिहारी वा गुरु की, जिन गोविन्द दिया मिलाय ॥

जायसी, सूर, तुलसी आदि कवियों ने गुरु की महिमा का गान किया है।

 

(3) भक्ति भावना का प्राधान्य - सभी कवि अपने आराध्य के प्रति अनन्य भक्ति एवं प्रेम की भावना रखते हुए साधना करने वाले हैं। निर्गुण ईश्वर के उपासक होते हुए भी भक्ति को प्रधानता दी है -

"हरि भक्ति जाने बिना, बूढ़ि, मुआ संसार।'

सूरदास जी गोपियों द्वारा उद्धव को कहलाते हैं -

 

" बार-बार यह वचन निहारो, भक्ति विरोधी ज्ञान तिहारो।'

तुलसीदास तो समन्वयवादी थे ही वे ज्ञान और भक्ति में कोई भेद नहीं बतलाते हैं -

"ज्ञानहि भक्तहिं नहि कहु भेदा। उभय हरहि भव सम्भव खेदा।'

(4) अहं तथा ममता का त्याग - किसी भी भक्त कवि के हृदय में अहंभाव का विकार नहीं है। अहंकार का परित्याग इन भक्तों की परम विशिष्टता है। कबीरदास जी के एक दोहे में दृष्टव्य है-

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहिं।
प्रेम गली अति साँकरी, जा में दो न समाहिं।

(5) सत्संगति माहत्म्य - निर्गुण सगुण दोनों के उपासक कवियों ने सत्संगति को विशेष महत्व दिया है। सूरदास जी ने दुर्जनों की संगति को त्याज्य बताया है

'तजौ मन हरि विमुखनि कौ संग'

रामचरितमानस तो सत्संग की महिमा से भरा पड़ा है।

(6) शस्त्र ज्ञान की अपेक्षा लोक व्यवहार के ज्ञान का प्राधान्य - कबीर ने तो ढाई अक्षर प्रेम को महत्ता देते हुए पोथियों के ज्ञान को निरर्थक कहा है- "पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पण्डित हुआ न कोय"। तुलसी ने भी केवल 'वाक्य ज्ञान' को अपर्याप्त समझा है " वाक्य ज्ञान अत्यन्त निपुण भख पार न पावे कोई" (विनयपत्रिका) सूर की गोपियाँ भी प्रेम के नीति अनुभव को ही प्रधानता देती है।

(7) संसार की निस्सारता - भक्तिकालीन कविता में दार्शनिक पृष्ठभूमि का महत्व एकदम सुस्पष्ट है। जैन भक्ति काव्य में संसार की असारता पर विशेष बल दिया गया है। अतः उसमें शान्त रस की प्रधानता परिलक्षित होती है।

(8) भक्ति साहित्य में दार्शनिकता - सभी भक्तों ने अपने-अपने मत के अनुसार जीव, ब्रह्म, माया, ईश्वर की प्रकृति आदि की विवेचना की है, जिनमें कबीर और जायसी के ब्रह्म निर्गुण और निराकर हैं, जबकि सूर और तुलसी के ब्रह्म सगुण और साकार हैं तथा जीव भी उस परम ब्रह्म का अंश है, जो अन्त में उसी में विलीन होता है।

(9) साधना मार्ग - सभी भक्तों का एकमात्र लक्ष्य माया से मुक्ति में मोक्ष की प्राप्ति के लिए अपने-अपने मतानुसार साधन-सम्पत्ति का सम्पादन करना है। जायसी का साधन मार्ग, प्रेम मार्ग है। सन्त कबीर का साधना मार्ग, ज्ञान मार्ग है। सूर का साधना मार्ग प्रेम लक्षण भक्ति है तो तुलसी का साधना मार्ग सेवा भाव की वैधी भक्ति है। सूर और तुलसी दोनों ने नवधा भक्ति का भी आश्रय लिया है। इन सभी साधनों मार्गों का लक्ष्य प्राप्ति है।

(10) भक्ति साहित्य में समन्वय की भावना - इस युग के सभी भक्त कवियों की रचनाओं में जीवन, समाज, धर्म एवं आचार-विचारों में परिलक्षित विरोधी विचारधाराओं का समन्वय प्रतिपादित किया है। ज्ञान और भक्ति का निर्गुण और सगुण का, वैष्णवों और शैवों का तथा अध्यात्म और योग का समन्वय विशेषतः अवलोक्य है।

तत्कालीन समाज की उक्ति प्रवृत्तियों के अनुसार काव्यों में भी अनेक धारायें प्रवाहित होने लगीं। ये धारायें इस प्रकार है -

भक्तिकाल
निर्गुण धारा सगुण धारा
ज्ञानाश्रयी शाखा प्रेममार्गी शाखा रामभक्ति शाखा कृष्णभक्ति शाखा

 

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
  3. प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  5. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  11. प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  14. प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
  19. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
  22. प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
  23. प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
  25. प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
  27. प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
  28. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  29. प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  33. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  34. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  35. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  36. प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
  37. प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  39. प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
  40. प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  42. प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
  43. प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
  44. प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
  45. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  48. प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
  51. प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  52. प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  61. प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
  64. प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
  65. प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
  67. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
  70. प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
  73. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  74. प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  83. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
  85. प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  87. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
  89. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
  90. प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
  91. प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
  93. प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  95. प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
  97. प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  101. प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
  102. प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
  104. प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
  105. प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
  106. प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  107. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  110. प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
  112. प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
  113. प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
  114. प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
  116. प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
  117. प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
  119. प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book